भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

म्हं अछूत / मुकुट मणिराज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हां सा, म्हं अछूत छूं
अछूत। जींसूं कोई भी न अड़ै।
म्हं सूं दूर रीज्यो सा
न्हं तौ,
आपकी ऊजळी काया काळी पड़ज्या
अपावन होज्या?
म्हं तो सदा सूं ई? आपका चरणो को
चाकर र्यो छूं मारा
म्हारी ठौर तो आपकी
पगरख्यां गोडै छै हुकम।
म्हारी ठौर तौ आपकी
पगरख्यां गोडै छै हुकम।
म्हारी सात पीढ़ी
आपकै बारणै पळी छै अर
म्हांका पेटां में
आपका गासड़ा भर्या छै
न्हं तौ,
म्हांको तो जन्म कोरो आपकी सेवा
अर बेगार करबा बेई होयो छै
भलांईं आप गासड़ो न पटकता, तोभी
आपकी सेवा तौ म्हांकी करम छो
पा वा’वा’ जी आपकी दयालुता।
कै टेम-सैम ज्यार-बाजरी दे’र
म्हं जीवता राख्या
मार्या पण मरबा न द्या,वरना
म्हां को तौ बंस ही उगट जातो
म्हारा बाप पै तौ
आपकी असीम किरपा छी हजूर
आपका गुण गातो न्ह थाकै छो, म्हारे बाप।
दिवाळी, कै दिवळी सालवार, आप
म्हरा बाप कै स्याफो बंधाता अर
पुवा-पापड़ी खाता
म्हारो घर आपनै हमेस अपणोई घर मान्यो
म्हाराी जीजी आपकै गोबर करती
अर म्हूं भैंस्या चरातो
म्हनै याद छै म्हारा बाप को
थकेलो उतारबा बेई, गलास भर’भर’ र
काची दारू प्वाता अर
कदी-कदी अटकळ सूं
जीजी कै तांई रूप्यो-आठाना देताई रैछा
आपकी उजै सूं म्हांकी भी आबरू रै री छै हुकम।
आपनै समाज री परवा कर्यां बना
म्हांकै तांईं इज्जत बख्सी वरना
म्हांकी भी कोई इज्जत छै?
या तौ आपकी महाना ई री छै कै-
आपनै म्हांकी मां बैण्यां छानै चुरके ई सही
पण समै-समै पै गळै लगाई
आप तौ सेठ साहूकार छो,
जागिदार छो, बड़भागी छो अन्दाता
राम जी नै आप, ईं जोग बणाया छो
आपकी छाया में म्हांकी पीढयां नै
बगत खाडी छै
आपने हमेसा म्हांको ध्यान राख्यो छै
म्हारा बापको आपसूं जादा भलो
कुण सोच सकं छो, ई लेखेई तौ
आपनै खो’छी ‘छोरा’ न मत पढाजै, दा’धूल्या-
न्हं तौ बगड़’र धूळ होज्यागो
सामै दांत्या करैगो
अर म्हारा बापनै आपकी बात रखाण’र
म्हाकी पीढ्यां की, अर कौम की लाज बचाली
सांच्याई चोखी होई, न्हं तौ
आज म्हं घर को रैतो न घाट को
धोबी का गंडक में हो जातो हजूर।
हाल, काम सूं कम
आपकी सेवा को तौ मोखो मलर्यो छै
ऊ देखो इकलव्यो।
इतराग्यो बतायो बेट्टो।
बताओ अेक अछूत, अर विद्या?
धरती आसमान को फरको
धोबी की छोरी’र केसर को तिलक
वा तो धन्न छै वां दूणाचारी जी माराज है
ज आपणो धरम खतम होबा सूं बचाज्यो
न्हं तौ अछूत अर विद्या ?
राम-राम। गजब हो जाती, अनरथ हो जातो
अणहोणी हो जाती सा।
अेक दन मोत्यो खैरया छो कै
मीराबाई नै रैदास गरू बणाया छा
बताओ या भी कोई होवा की बात छै ?
अेक महाराणी’र चमार नै गरू बणावैगी ?
कांई गपोड़ा तागै छै लोग
अस्याई बालमीक जी भी म्हांकी
ज्यात काई बतावै छै, पण म्हारै न्हं जंचै
आपकी संगत में रयो छूं मारा
आछी तरां जाणूं छं कै कांई भी होज्या
पण आदमी नै अपणो
धरम न्हं छोडणी छाइजे
पण आजकाल म्हांका समाज में भी
पढाई की बातां चालबा लागगी
नरा’ नेता भी होेबा लागर्या छै
ई सूं खै छै कुळजुग
मनख नै अपणो करम छोडर्यो
आपनै न्हं सुणी कै ?
म्हाकै साथ का घींस्या को छोरा
सोळवी में पढै छै, ऊंनै काल
सेठ माणक जी में गाळ्या खाडी
अर आप-धाप पै आग्यो,
अताओ, ओलाती को पाणी
मंगरै चढर्यो छै।
म्हूं भी अेक संगट में छूं मारा
म्हारो भी छोरो
पढबा जाबा लागग्यो
अर खैबा लागग्यो कै यां सेठ सहूकरां नै
आपणो खून चंस्यो छै अर
यां जमीदारां नै अपणै ठोकरां मारी छै
ऊ तो ओर भी नरी’ बातां करै छै
अेक बात छै मारा, जमानो घणो बदलग्यो।