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यदि नहीं चीन्ह मैं पाऊँ, क्या चीन्ह मुझे वह लेगा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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यदि तारे नाइ चिनि गो से कि आमाय नेबे चिने
यदि नहीं चीन्ह मैं पाऊँ, क्या चीन्ह मुझे वह लेगा ।
इस नव फागुन की बेला, यह नहीं जानती हूँ मैं ।।
निज गान कली में मेरी, वह आकर क्या भर देगा,
यह कहाँ जानती हूँ मैं ।। इन प्राणों को हर लेगा ।
क्या अपने ही रंगों में, वह फूल सभी रंग देगा,
क्या अंतर में आ करके वह नींद चुरा ही लेगा,
क्या गःऊँघट नव पत्तों का, कर जाएगा वह चंचल,
मेरे अंतर की गोपन वह बात जान ही लेगा—
यह कहाँ जानती हूँ मैं ।।
मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
('गीत पंचशती' में 'प्रकृति' के अन्तर्गत 55 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)