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यही सच है, ये कोई भ्रम नहीं है / भाऊराव महंत

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यही सच है, ये कोई भ्रम नहीं है।
ज़मीं पर ज़िन्दगी कायम नहीं है।

मुहब्बत को अदावत में बदल दे,
किसी भी शख़्स में वो दम नहीं है।

भरी दौलत मगर फिर भी घरों में,
ख़ुशी का एक भी आलम नहीं है।

उसे मक्कार या झूठा कहें हम,
जो ख़ुद की बात पर कायम नहीं है।

जहां वालों ग़लत है बात उसकी,
ज़माने में कहे जो ग़म नहीं है।

नहीं कमज़ोर समझो दूसरों को,
यहाँ कोई किसी से कम नहीं है।

भला महफ़िल हमें क्यों दाद देगी,
तरन्नुम में अगर सरगम नहीं है।