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यह तो देह है,एक दिन जरूर छूटेगी। / संजय तिवारी

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रोमहर्षण ने
सारी बात तो बताई थी
कृष्ण के बाद के भारत की
हर व्यथा कथा सुनाई थी
नैमिषारण्य के
शिखर सम्मलेन में
दिया था प्रत्येक ऋषि के
प्रश्नो के उत्तर
सूत जी कभी न हुए हैं निरुत्तर
शौनक के प्रश्नो से
जटिल तो नहीं था तुम्हारा संदेह
अच्छी भली थी तुम्हारी भी देह
कलियुग के हर पड़ाव के लिए
प्रस्तुत था विस्तार
कैसे नहीं जान पाए तुम
समय का संहार
तुम जान सकते थे
जब सृष्टि जन्मी थी
प्रकृति पनपी थी
दिखा था सरयू का प्रवाह
मनु ने दिखाई थी
सुव्यवस्थित राह
जो पुरखे सगर के थे?
वे तुम्हारे भी थे
जब भगीरथ लेकर आये
गंगा के किनारे भी थे
तुम्हारी समझ में जीवन
केवल भ्रम है
सृष्टि के लिए
संहार भी एक नियम है
सती से लेकर सावित्री तक
संध्या से लेकर गायत्री तक
सभी पावन मंत्र हैं
लेकिन हम तुम और यह जगत
केवल यंत्र हैं
इन्हे चलाती है साँसों की एक माला
केवल एक ही है?
इसमें धागा पिरोने वाला
लेकिन माला तो माला होती है
वह एक दिन जरूर टूटेगी
तुम चाहे जितना भी बटोर लो
धम्म और ज्ञान
यह तो देह है
एक दिन जरूर छूटेगी।