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यह मौत की घाटी मेरा मुल्क नहीं / नवारुण भट्टाचार्य / लाल्टू

Kavita Kosh से
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हमें ख़ून और कुर्बानी से आज़ादी मिली है और इसी से इसकी धड़कन लगातार कायम है। हमने समझ-बूझ कर कुरबानियाँ दी हैं। यह महज एक किश्त है जो हमारी आज़ादी की बुनियाद के लिए है। - चे

जो बाप अपने बच्चे की लाश की शिनाख़्त करने से घबराता है
मुझे उससे नफ़रत है ...
जो भाई अब भी बेशर्म बेपरवाह बैठा है
मुझे उससे नफ़रत है ...
जो अध्यापक, बुद्धिजीवी, कवि और क्लर्क
                                    सामने आकर इस क़त्ल का बदला नहीं माँगता
मुझे उससे नफ़रत है ...

आठ लाशें
होश की राह घेरे लेटी हुई हैं
मैं बदहवास हो रहा हूँ
                       आठ जोड़ी खुली आँखें नींद में मुझे देखती हैं
मैं चीख़ता उठ पड़ता हूँ
                       वे नीम अँधेरे मुझे बाग़ में बुलाती हैं हर वक़्त
मैं पागल हो जाऊँगा
ख़ुदक़ुशी कर लूँगा
जो मर्ज़ी करूँगा


                       कविता लिखने का यही वक़्त है
इश्तहारों में, दीवार पर या कि स्टेन्सिल पर
अपने ख़ून, आँसू व हड्डियों से कोलाज की तरह
                       अभी कविता लिखी जा सकती है
बेइन्तहा पीर और छिन्न-भिन्न शक़्ल
(पुलिस) वैन की हेडलाइट की चौंधियाती रोशनी में नज़र अडिग रखे
तशद्दुद के मुख़ातिब ...
                       अभी कविता उछाली जा सकती है
.38 और और-भी जो कुछ हत्यारे के पास है
सब नामंज़ूर कर अभी कविता पढ़ी जा सकती है


बर्फ़ीली चट्टान जैसे लॉकअप के कमरे में
शवपरीक्षा की गैस वाली रोशनी को झकोरती
हत्यारे की चलाई अदालत में
                       झूठ और अनपढ़ता के मदरसे में
                       शोषण और ज़ुल्मों की सत्ता की मशीनरी में
                       फौजी और दीवानी अधिकारियों के सीने पर
कविता में विरोध गूँज उठे
                       (बांग्ला) देश के कवि भी लोर्का की तरह तैयार रहें
हत्याएँ, दम घुटकर मरने और लाशें ग़ायब होने के लिए
                       स्टेनगन की गोलियों से छने जाने को तैयार रहें
फिर भी कविता के गाँवों का कविता के शहर को घेर लेना बहुत ज़रूरी है

यह मौत की घाटी मेरा मुल्क नहीं
                       ख़ूं से नहाया यह कसाईख़ाना मेरा मुल्क नहीं
                       जल्लाद के जश्न का यह मंच मेरा मुल्क नहीं
                       यह फैला हुआ श्मशान मेरा मुल्क नहीं
                       ख़ूँ से नहाया यह कसाईख़ाना मेरा मुल्क नहीं


मैं अपना मुल्क वापस छीन लूँगा
सीने में थामूँगा कुहासे में भीगी लम्बी घास के फूलों की शाम और विसर्जन
                       मेरे समूचे बदन को घेरे रहेंगे जुगनू या कि पहाड़ों की फ़सल
                       अनगिनत दिलों में अनाज, लोककथाएँ, फूल, नारी, नदी
                       हर शहीद के नाम एक-एक तारों के मनमर्ज़ी नाम रखूँगा
डगमगाती हवाओं को, धूप-छाँव में मछली की आँखों जैसी झील को बुलाऊँगा
प्रेम ... जिससे जन्म से प्रकाशवर्ष की दूरी पर अनछुआ रहा हूँ
                       उसे भी इंक़लाब के जश्न के दिन बुला लूँगा

आँखों पर हज़ार वाट की रोशनी डालकर रात-दिन की पूछ-पड़ताल
                       मैं नहीं मानता
नाख़ून में सुई और बर्फ़ की सिल्ली पर सुला रखना
                       मैं नहीं मानता
जब तक नाक से ख़ून न बहे, बँधे पैर लटका रखना
                       मैं नहीं मानता
होंठों पर बूट, सारे बदन पर जलती तीली से घाव
नंगे जिस्म पर बिजली के झटके, घिनौना विकृत यौन आत्याचार
                       मैं नहीं मानता
पीट-पीट कर क़त्ल किया जाना, खोपड़ी पर रिवॉल्वर टिका कर गोली चलाना
                       मैं नहीं मानता

कविता कोई रोक नहीं मानती
                       कविता सशस्त्र है, आज़ाद है, निडर है
देखो मयाकोव्स्की, हिकमत, नेरूदा, आरागों, एलुआर्द
                       तुम्हारी कविता को हमने हारने नहीं दिया
उल्टे सारा मुल्क एक नया महाकाव्य लिखने की कोशिश में है
गेरीला छन्दों में रचे जा रहे हैं सभी अलंकार
गरज उठें मादल<ref>पखावज जैसा ढोल</ref>
मूँगे के द्वीप जैसा आदिवासी गाँव
                       ख़ून से लाल रँगे नीले खेत
नागराज के ज़हरीले फन की शक़्ल में हो घायल तितास नदी
                       मौत से भीगी प्यासी ज़हरीली तितली
गाण्डीव से छूटे तीर की नोक की टँकार से अन्धा सूरज
                       तेज़ तीखी अति-हिंसक धार
भल्ला ! तुम्हारे भाले गण्डासे रस्सियाँ


हर पल झलकते बल्लम जलोढ ज़मीं पर कब्ज़ा के भाले-बरछे
मादलों के ताल पर ट्राइबल टोटेम<ref>आदिवासियों के कुलचिह्न</ref> की आँखों में ख़ून छलके
बन्दूक, खुखरी, कसाई का चाकू उफनता जोश
                       जोश इतना है कि अब डर नहीं
और भी हों क्रेन दाँतों वाले बुलडोज़र सशस्त्र-दस्तों के जुलूस
चालू डायनेमो टर्बाइन लेद और इंजिन
धसान के नीचे कोयले से निकलती मीथेन अन्धेरे में सख़्त हीरे जैसी आँखों वाला
                       ग़जब फ़ौलाद का हथौड़ा
डॉक<ref>कोलकाता बंदरगाह के जहाज़घर</ref> जूट-मिल की भट्टियों के आस्माँ में उठे हज़ारों हाथों को<ref>आज़ादी के बाद जूट (पटसन) मिलें इस ओर रह गई थीं और सन की पैदावार अधिकतर पूर्वी बंगाल में होती थी - धीरे-धीरे मिलें बन्द होने लगीं और कामगारों ने लम्बी लड़ाइयाँ लड़ीं </ref>
नहीं, अब डर नहीं
                       डर की फीकी शक़्ल बेगानी लगती है
जब जान लेता हूँ कि मौत प्यार के सिवा कुछ नहीं है
मेरा क़त्ल करोगे तो
(बंगाल) मुल्क में सभी माटी के दिए लौ बनकर फैल जाएँगे
                       मुझे ख़त्म नहीं कर पाओगे
हर बरस धरती के बीच में से हौसले का हरापन लिए लौट आऊँगा
मैं ख़त्म नहीं होऊँगा...
सुख से रहूँ दुख में रहूँ सन्तान-जनते और तमाम रस्में निभाते
जब तक (बांग्ला) देश रहेगा तब तक
जो मौत रात की ठण्डक में जलता बुलबुला बन उभर आती है
                       वह दिन वह मौत वह जंग लाओ
सेवेंथ फ्लीट<ref>अमेरिकी नौसेना का सातवाँ फ़ौजी जहाज़ी बेड़ा जो बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई के दौरान पाकिस्तान के समर्थन में बंगाल की खाड़ी में आ गया था</ref> को रोक दे सात नावों वाला मधुकर सौदागर<ref>मनसा मंगल कथा में चाँद सौदागर</ref>
सिंहनाद और शंख बजाकर जंग की शुरूआत की घोषणा हो
                       जब हवा ख़ून की बू के नशे में हो
जल उठे कविता विस्फोटक बारूद की माटी...
                       रंगोली गाँव नाव नगर मन्दिर
जब तराई से लेकर सुन्दरबन की सीमा तक
                       सारी रात रोने के बाद जल कर सूखे रह गए हैं
जब जन्मभूमि की मिट्टी और मक़्तल के कीचड़ में कोई फ़र्क नहीं रहा
तो फिर कैसा संशय
कैसी फ़िक्र
कैसा त्रास

आठ जने छू रहे हैं
ग्रहण के अन्धेरे में फुसफुसाते हुए कह रहे हैं कहाँ कब पहरा लगा है
उनकी आवाज़ में अनगिनत तारे आकाशगंगाएँ समन्दर
एक से दूसरे ग्रह में तैरने-उड़ने का उत्तराधिकार ...
                       कविता की जलती मशाल
                       कविता का मॉलोटोव कॉकटेल<ref>पेट्रोल भरी बोतल और चिंगारी</ref>
                       कविता की टॉलुइन<ref>एक जलने वाला ऑर्गानिक तरल पदार्थ</ref> लपट
इस आग की चाहत में झपट गिरे।

मूल बांग्ला से हिन्दी में अनुवाद : लाल्टू

शब्दार्थ
<references/>