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युवको के प्रति / शिशुपाल सिंह यादव ‘मुकुंद’

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आचार सत मृत सा पड़ा,पनपे अनाचारी यहां
ढूढों भला आगे बढो तुम,स्तय का युग है कहाँ ?
भ्रष्टता के लौह-पर्वत,सहज में तुम तोड़ दो
युवको तभी तो युवक तुम,अन्याय घट जब फोड़ दो

अंबार पापो का लगा,पापी पनपते जा रहे
पीसता अंधा यहां,कुत्ते मजे से खा रहे
रक्त न रहे तन पामारों का, अंग -अंग निचोड़ दो
युवको तभी तो युवक तुम,अन्याय घट जब फोड़ दो

स्वार्थी तुम्हे कहते की तुम हो, निपट बच्चे और कच्चे
कह दो उन्हें सठिया गए हो,हम युवक निर्भीक सच्चे
योग तो सच्चा वही तुम,सत्य -जन में जोड़ दो
युवको तभी तो युवक तुम,अन्याय घट जब फोड़ दो

गत बात मत सोचो कि तब,कितना अधिक उत्थान था
पतन होना बहुत से क्या, वर्तमान विधान था
कल्याण की प्रतियोगिता में,मीलो हजारो दौड़ दो
युवको तभी तो युवक तुम,अन्याय घट जब फोड़ दो

हिरण्यकशिपु कलि-राज में,तुम युवक हो प्रहलाद सम
विष -आग-पर्वत-मृत्यु,माध्यम में पड़े न कोई गम
नरसिह सा नेता चुनो, संसार की गति मोड़ दो
युवको तभी तो युवक तुम,अन्याय घट जब फोड़ दो