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ये ज़िंदगी सज़ा के सिवा और कुछ नहीं / रम्ज़ अज़ीमाबादी

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ये ज़िंदगी सज़ा के सिवा और कुछ नहीं
हर साँस बद-दुआ के सिवा और कुछ नहीं

बिखरी हैं रास्तों पे सफ़र की कहानियाँ
दुनिया नुक़ूश-ए-पा के सिवा और कुछ नहीं

बच्चों की लाश चाक-रिदा और बुरीदा-सर
हर शहर कर्बला के सिवा और कुछ नहीं

ज़म्बील ज़िंदगी में बड़ों का दिया हुआ
कुछ सिक्का-ए-दुआ के सिवा और कुछ नहीं

ये तजरबा मिरा है कि इक लम्हा-ए-नशात
मिट्टी भरी ग़िज़ा के सिवा और कुछ नहीं

अक्स और आईना में अगर राब्ता न हो
ये भी ग़लत अना के सिवा और कुछ नहीं

हर शय को उस के अस्ल की तमसील जानिए
कौनैन में ख़ुदा के सिवा और कुछ नहीं

ऐ ‘रम्ज़’ कोई दे दे मुझे ज़हर-ए-बे-हिसी
ये आगही सज़ा के सिवा और कुछ नहीं