भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये दुनिया की सच्चाई है / पुरुषोत्तम प्रतीक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये दुनिया की सच्चाई है
गंगाधर ही विषपाई है

उस पत्थर की सूरत बदली
जिस पर गुल की परछाईं है

साए ग़ायब हैं पेड़ों के
ये मौसम की चतुराई है

मैं घर ढूँढ़ रहा हूँ, घर में
तनहाई ही तनहाई है

देखो-परखो यार ग़ज़ल को
आँसू है या अँगड़ाई है