ये फ़ैसला मेरा न था जो इस तरफ़ आना हुआ / रवि सिन्हा
ये फ़ैसला मेरा न था जो इस तरफ़ आना हुआ
हैरत किसे है जो मैं इस कूचे से बेगाना हुआ
जिस ख़ाक से उभरा हूँ उसपर हुक्म क़ुदरत का चले
जिस जिस्म में हूँ वो अनासिर<ref> तत्व, पंचभूत (elements)</ref> का सनम-ख़ाना<ref> मन्दिर (temple)</ref> हुआ
जो इस मशीन में भूत है पैदा हुआ है मशीन से
मैं मकीं<ref> रहने वाला (resident)</ref> हुआ के मकाँ हुआ या सिर्फ़ अफ़साना हुआ
मेरा वजूद है आरज़ी<ref>क्षणिक (temporary)</ref> इस दास्ताने-तवील<ref>लम्बा (long)</ref> में
वो हबाब<ref>बुलबुला (bubble)</ref> हूँ जो दहर<ref>काल, युग, जगत (Time, Era, World)</ref> के होने का पैमाना हुआ
क्या पूछते हो हाल क्यूँ ढूँढे फिरे हो सबब यहाँ
वज्हे-जुनूँ की तलाश में वो शख़्स दीवाना हुआ
हर ख़िश्त<ref>ईंट (brick)</ref> में मंतिक़<ref>तर्क (logic)</ref> हक़ीक़त फ़र्श में दीवार में
यूँ देखिये ख़्वाबो-तख़य्युल<ref> कल्पना (imagination)</ref> का ये बुत-ख़ाना हुआ
देखो कहानी मुख़्तसर कुछ यूँ न हो जाये कहीं
बस बेवजह आना हुआ और नागहाँ<ref>अचानक (suddenly)</ref> जाना हुआ