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ये समझते हैं, खिले हैं तो फिर बिखरना है / अदम गोंडवी

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ये समझते हैं, खिले हैं तो फिर बिखरना है ।
पर अपने ख़ून से गुलशन में रंग भरना है ।

उससे मिलने को कई मोड़ से गुज़रना है ।
अभी तो आग के दरिया में भी उतरना है ।

जिसके आने से बदल जाए ज़माने का निज़ाम<ref>व्यवस्था</ref>,
ऐसे इंसान को इस ख़ाक से उभरना है ।

बह रहा दरिया, इधर एक घूँट को तरसें,
उदय प्रताप जी<ref>शिकोहाबाद के प्रसिद्ध कवि, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान के अध्यक्ष</ref> वादे से ये मुकरना है ।

शब्दार्थ
<references/>