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रंगत बिगड़ गयी हो तो तस्वीर क्या करे / डी. एम. मिश्र

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रंगत बिगड़ गयी हो तो तस्वीर क्या करे
तक़दीर साथ दे न तो तदबीर क्या करे

किसका गुनाह माफ़ हो, किसका हो सर क़लम
मर्ज़ी है बादशाह की शमशीर क्या करे

दो गज़ ज़मीन का भी ठिकाना नहीं है कल
इतने बड़े जहाँ की वो जागीर क्या करे

वह जानता है सब यहीं रह जायेगा इक दिन
दौलत बटोर कर के वह फ़क़ीर क्या करे

पहले से हो पता तो लोग जाँय भी सँभल
राँझे से प्यार हो गया तो हीर क्या करे

मुमकिन नहीं ऐ दोस्त कि हर शै गुलाम हो
बहती हुई हवा है वो ज़ंजीर क्या करे