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रंग में डूबी हुई, खुशबू भरी लगती है धूप / 'महताब' हैदर नक़वी
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रंग में डूबी हुई, खुशबू भरी लगती है धूप
तू अगर हमराह है तो चाँदनी भरी लगती है धूप
एक दिन वह था कि थी इससे शनासाई बहुत
आज तेरे शहर में भी अजनबी लगती है धूप
इन पियादापाइयों में है सफ़र बेसम्त का
रहम कर ऐ महरम-एतश्नालबी लगती है धूप
सारे दरवाज़े मुक़फ़्फ़ल हैं, सभी राहें ख़ामोश
साया-ए-दीवार से चिपकी लगती है धूप
कैसी ये आँखें हैं, इनके रंग ही कुछ और हैं
इन झरोंखों से कोई देखे भली लगती है धूप