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रजनीगंधा के फूलों सी / पीयूष शर्मा

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अपने नैनो के बादल से, जब नेह नीर बरसाती हो।
रजनीगंधा के फूलों-सी, तुम मधुर गंध बन जाती हो॥

तुम चपल चंचला चंदा की, तुम सुधियों का मीठा गुंजन
तुम पनघट की पावन गोरी, तुम प्रेम भरा हो आलिंगन
जब यौवन पर पुलकित होकर, तुम मंद-मंद मुस्काती हो।

तुम आशाओं की आशा में, तुम नदियों में तुम साहिल में
जब से तुमको देखा मैंने, तब से उत्पात मचा दिल में
जब प्रेम ग्रंथ के अमर मंत्र, मेरे सम्मुख दुहराती हो।

माथे पर इतराती बिंदिया, दृग में काजल इठलाता है
सचमुच ही मेरे नयनों को, यह रूप तुम्हारा भाता है
जब रंग-बिरंगे वस्त्रों में, मेरी कुटिया में आती हो।