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रवाँ दवाँ सू-ए-मंज़िल है क़ाफ़िला कि जो था / उर्फी आफ़ाक़ी

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रवाँ दवाँ सू-ए-मंज़िल है क़ाफ़िला कि जो था
वही हनूज़ है यक-दश्त़ फ़ासला कि जो था

निशात-ए-गोश सही जल-तरंग की आवाज़
नफ़स नफ़स है इक आशोब-ए-कर्बला कि जो था

गया भी क़ाफ़िला और तुझ को है वही अब तक
ख़याल-ए-ज़ाद-ए-सफ़र फ़िक्र-ए-राहिला कि जो था

वो आए जाता है कब से पर घर आ नहीं जाता
वही सदा-ए-क़दम का है सिलसिला कि जो था