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रस्सियाँ सब खुल गई हैं अब सितम के तार की / मृदुला झा

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बात अब कोई नहीं इस पार या उस पार की।

जश्न का माहौल है ले लो मजा तुम जीत का,
है नहीं दुश्वारियाँ कोई मेरे दिलदार की।

कब कहाँ कैसे मिली थी प्यार की सौगात ये,
रौंद डाली ख्वाहिशें जुल्मों सितम तलवार की।

कर भला होगा भला सच हो गया यह फलसफा,
है नहीं परवाह अब तो जीत की या हार की।

बज रहे देखो नगाड़े आस और विश्वास के,
जल रही धंू-धंू चिताएँ लूट-भ्रष्टाचार की।

है बचाना अब हमें हर जुल्म से इस मुल्क को,
यह परीक्षा है हमारे काम की व्यवहार की।