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रहा जा सकता है वहाँ भी / जयप्रकाश मानस

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रहा जा सकता है वहाँ भी

मुकम्मल तौर से

बारी-बारी से खिड़की के पास बैठकर

कुछ भीतर-कुछ बाहर

निहार लिया जाए बारी-बारी से


बारी-बारी से

एक ही चटाई पर लेटकर

सपना देख लिया जाए

बारी-बारी से एक ही थाली में परोसी गई

मकोई की रोटी अरहर की दाल

भात-कढ़ी में ताजी धनिया डाल

खा लिया जाए


बारी-बारी से

कुलदेवता वाली ‘मानता पथर’ के आगे

हल्दिया चाउल छिड़ककर

समानधर्मी मन्नतें माँग ली जाएँ


बारी-बारी से

बूढ़े पहाड़ जैसे सयाने पिता

हरी-भरी नदी जैसी अनुभवी माँ

की हिदायतें मान ली जाय

तो रहा जा सकता है

अपने पुस्तैनी गाँव से बहुत दूर

किसी भी अचीन्ही, अदयालु, असंवेदित महानगरी में

बुरे समय वाले निर्वासित जीवन के

कुछ दिनों में

दो या फिर तीन कमरे वाले घर में


यूँ भी

हर इंच जगह में दुनिया हो सकती है

समूची दुनिया में रह नहीं सकता कोई भी

यूँ भी

किसी को ताउम्र एक इंच पर नहीं रहना होता

रहा जा सकता है

वहाँ भी गाँव लौटने के पहले तक

मुकम्मल तौर से