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राग रस जीवन / प्रेमलता त्रिपाठी

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राग रस जीवन का अनुभाव।
बहे वह हर अंतस में स्राव।

लाज पट नयनों के श्रंृगार,
रीत जो माने मन के भाव।

खोल बंधन उर के अब द्वार,
प्रणय पथ रोके सब भटकाव।

कहीं जब ममता बनती प्रीति,
तनय सुख सरस बनी वह नाव।

बहन की राखी रोली राग,
वलय बन दूर करे अलगाव।

मिटा संताप हृदय को हार,
प्रीत गति देती है अटकाव।