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राघव भाई दारूवाला पर एक निबंध / प्रकाश मनु

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राघव भाई दारूवाला हर रोज बिला नागा नहाकर
मत्था टेक जाते हैं दफ्तर
दफ्तर की घूमने वाली कुरसी उनका इंतजार ही
कर रही होती है कि अभी तक आए नहीं राघव भाई
दारूवाला शायद नौ तीस नहीं हुए

राघव भाई दारूवाला समय के पाबंद हैं नियम
के बड़े सख्त
अधीनस्थों को कैसे दुत्कारना चाहिए जानते हैं
राघव भाई
विपदा आए तो किसके आगे
कब कैसे बिछ जाना चाहिए जानते हैं राघव भाई

राघव भाई चिकने हैं अपने कीमती सफारी सूट
की तरह
राघव भाई गोलमटोल हैं अपने सदाबहार
गालों की तरह
राघव भाई की आंखों में रहती है अजब उदासी
अजीब दुर्दमनीय चमक
राघव भाई एक को दूसरे से छिपाते रहते हैं

राघव भाई कोई लल्लू नहीं दुनियादार हैं
दुनियादारी का तकाजा है इसलिए बहुतों की
गरदन पर रखकर हाथ एक-दूसरे से भिड़ाते रहते हैं

राघव भाई तो बस इस्तेमाल करते हैं जो भी आ जाए
जहां भी आए
लोग खुद ही मरने आ जाएं तो राघव भाई
का क्या कसूर
राघव भाई का सर्वप्रिय मुहावरा है ये मुंह और मसूर (की दाल)
लोग तो पैदा ही हुए हैं मरने के लिए
का पैट वाक्य है दारू पीने के बाद

मैं राघव हूं मगर दारूवाला भी तो हूं नशे में
पासे फेंकते हुए वे कहते हैं झूमते-झामते कहते हैं तो
और गहरे हो जाते हैं आंखांे के लाल डोरे

उनके एक-एक पासे से मरते हैं कई हजार उनकी
गोलियों से सैकड़ांे घर-बार मगर राघव भाई
तटस्थ हैं
इस नश्वर दुनिया पर खुशी न गम
राघव भाई सचमुच संत हैं

तटस्थ भाव से दवाओं में मिलाते जाते हैं जहर
और कहते हैं हम-सारे के सारे
मिल (कोरस में)-आह राघव भाई दारूवाला के
चेहरे पर है कितना तेज!
ये कैसे हो सकते हैं हत्यारे
हमारी जान भले ही चली जाए
पर राघव भाई दारूवाला
को नहीं छू पाएगी पुलिस
आगे-आगे खड़ी होगी, लोगों की सेना
छाती तान!

हर संकट में हमारे-तुम्हारे इसी सदाचार पर भरोसा
है राघव भाई को
जब-तब करते हैं इसी की तारीफ
कि दुनिया सचाई पर टिकी हुई है
और राघव भाई जिए जा रहे हैं मजे से

उन्होंने कितनों को मारकर ली डकार उसकी क्या खाकर
करेगा भला कोई गिनती
राघव भाई दारूवाला हैं सृष्टि का अपरिहार्य तत्व
राघव भाई दारूवाला हैं रक्तबीज
एक मरता है राघव भाई दारूवाला तो उसके मल
से सैंकड़ों पैदा हो जाते हैं

राघव भाई का ढोंग न तोप भेद सकती है न तलवार
उन पर काम नहीं करता कोई भी वार
राघव भाई को मारने का बस एक ही तरीका है
उन्हें कुछ देर के लिए अकेला कर दो

न बजा सकें वह घंटी न पीयन
न फाइल न गुप्ता न शर्मा सक्सेना टेलीफोन
न मिलने कोई आए राघव भाई दारूवाला से कि
मैं कलकत्ते से आया हूं सर प्लीज...

और राघव भाई दारूवाला खुद-ब-खुद मर जाएंगे।