भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात की गाथा / अरुण कमल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जैसे उतरने में एक पाँव पड़ा हो ऎसे
मानो वहाँ होगी एक सीढ़ी और
पर जो न थी
ऎसे ही हाथ पीठ पर पड़ते लगा उसे

और ऎसे ही सुबह हुई
हाथ पीठ पर रक्खे-रक्खे ।