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राष्ट्रपिता / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

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हे विश्व-वंद्य मानव महान्!
हे युग-सृष्टा, देशाभिमान!
तुमको प्रणाम, शत-शत प्रणाम!

तुम सत्य-अहिंसा के प्रतीक, थे राष्ट्र तरणि के कर्णधार।
स्वातन्त्र्य-समर के सेनानी भारत माता के हृदय-हार।
थे क्षमा दया की सत्य मूर्ति, तप त्याग तेज बल के निधान।

हे विश्व बंद्य बापू महान!
हे युग-विभूति, देशाभिमान!
तुमको प्रणाम, शत-शत प्रणाम॥

प्राणांे को प्रण पर वार दिया, थे भीष्म-पिता से दृढ़-प्रतिज्ञ।
नूतन आलोक दिया जग को, हे राम-कृष्ण से प्रवर विज्ञ।
तुम थे दधीचि इस नवयुग के, दे दिया देश-हित अस्थि दान।

हे विश्व-वंद्य मानव महान्!
हे युग-सृष्टा, देशाभिमान!
तुमको प्रणाम, शत-शत प्रणाम!

दीनों-दलितों को अपना कर, तुमने उनका उद्धार किया।
सब भेदभाव को मिटा, एक बस मानवता से प्यार किया।
अगणित कष्टों को सह कर भी पथ से न डिगे धु्रव धैर्यवान।

हे विश्व-वंद्य मानव महान्!
हे युग-विभूति, देशाभिमान!
तुमको प्रणाम, शत-शत प्रणाम!

हे सम-दृष्टा, हे सत्य-सिन्धु! हे गौतम-ईसा के स्वरूप।
हे महामहिम हे यशोराशि हे भ्रान्त पथिक-दीपक अनूप।
थे प्रतिपालक सब धर्मों के समझे समान गीता-कुरान।

हे विश्व-वंद्य मानव महान्!
हे युग-सृष्टा, देशाभिमान!
तुमको प्रणाम, शत-शत प्रणाम!

तुम थे जीवन भर लगे रहे आशा के अंकुर बोने में।
जन-जन के मानस में सनेह के मंजुल दीप सँजोने में।
कर दिया भीरुता का विनाश, भर कर कण-कण में स्वाभिमान।

हे विश्व-वंद्य मानव महान्!
हे युग-विभूति, देशाभिमान!
तुमको प्रणाम, शत-शत प्रणाम!

बाँधे अगणित जन-मन तुमने, लेकर कच्चे दो तार सूत।
थे जादूगर या सिद्धि प्राप्त हे विश्व-शान्ति के अग्रदूत!
पाकर तुमको पाया हमने, खोया अतीत निज सुसम्मान।

हे विश्व-वंद्य मानव महान्!
हे युग-सृष्टा, देशाभिमान!
तुमको प्रणाम, शत-शत प्रणाम!

सत्याग्रह का लेकर कुठार, की स्वत्व-समर में विजय प्राप्त।
‘जय वीर विजेता बापू की!’ यश-गान चतुर्दिक हुआ व्याप्त।
कर दूर दासता अन्धकार, प्रकटाया नव स्वर्णिम विहान।

हे विश्व-वंद्य मानव महान्!
हे युग-विभूति, देशाभिमान!
तुमको प्रणाम, शत-शत प्रणाम!

अपने हाथों खोकर तुमको, हम आज हुए हैं दीन-हीन।
है स्वप्न अभी तक रामराज्य, स्वाधीन देश है शोक-लीन।
कर सकें अधूरा कार्य पूर्ण, दो हमें शक्ति साहस महान्।

हे विश्व-वंद्य मानव महान्!
हे युग-विभूति, देशाभिमान!
तुमको प्रणाम, शत-शत प्रणाम!