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रास्ते का पता / दिनेश जुगरान

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यहाँ से रास्ते
होते हैं प्रारम्भ
या समाप्त
यह निश्चित नहीं है
ये किसी भी राहगीर के
अंतिम पड़ाव भी नहीं होते
लेकिन गुज़रना सभी को पड़ा है
इन चौराहों से

हो सकता है
चौराहों का न होता हो
शरीर
आत्मा अवश्य होती है उनमें
जो बना देती है द्रष्टा

अपरिचित अनजान चेहरे
सजते
थोड़ी देर की चहल-पहल
फिर आ जाते
नये चेहरे, नये लोग
गुज़रते चौराहों से
लेते अपनी-अपनी राह

चौराहों से ही
प्रारंभ होती है
नई राह, नई दिशाएँ
हर मुसाफिर पूछता
आगे किसी अन्य रास्ते का पता
और छोड़ जाता है
चौराहे को अकेला