भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राह पुरखार है , लेकिन ये सफ़र करना है / ओम प्रकाश नदीम
Kavita Kosh से
राह पुरखार<ref>काँटों भरी</ref> है, लेकिन ये सफ़र करना है ।
चलना दुश्वार है लेकिन ये सफ़र करना है ।
धूप के साथ ही रुख़ अपना बदल देती है,
छाँव मक्कार है लेकिन ये सफ़र करना है ।
पाँव में धर्म की ज़ंजीर है, और बातिल<ref>असत्य</ref> की,
सर पे तलवार है लेकिन ये सफ़र करना है ।
गाँव से तार ये आया है कि बीमार है माँ,
आज त्योहार है लेकिन ये सफ़र करना है ।
हमको मालूम है इस राह में आगे चल कर,
ख़तरा-ए-दार है लेकिन ये सफ़र करना है ।
शब्दार्थ
<references/>