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रूठी हुई बहार सी लगती है ज़िन्दगी / जगदीश तपिश

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रूठी हुई बहार-सी लगती है ज़िन्दगी
टूटी हुई पतवार-सी लगती है ज़िन्दगी

ना रोशनी है और ना जलता हुआ चराग
उजड़ी हुई मजार-सी लगती है ज़िन्दगी

मंजिल ना कारवाँ ना रहा हमसफ़र कोई
उड़ते हुए गुबार-सी लगती है ज़िन्दगी

जब से जुदा हुए हैं हम आपसे सनम
फुरकत में गुनाहगार-सी लगती है ज़िन्दगी

हम क्या खुदा से माँगते अपने लिए तपिश
एक तिरे इंतज़ार-सी लगती है ज़िन्दगी