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रूठ कर मुझ से भला तू कब तलक तरसाएगी / शोभना 'श्याम'

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रूठ कर मुझ से भला तू कब तलक तरसाएगी
जिंदगी किस दिन भला तू पास मेरे आएगी

ख़त्म होने को है आया नेह का जो तेल था
इन चिरागों से कहाँ अब रौशनी मिल पाएगी

चाँद रुक जाना नहीं तू पोंछने आंसू मेरे
ख्वामखा ये रात लम्बी और भी हो जायेगी

पाँव बाहर देहरी के रख ना पायी उम्र भर
अब बुढ़ापे में सूना है धाम चारों जायेगी

सीख लो गिरगिट के जैसी रंग बदलने की कला
जीतना है ये जहाँ तो काम ये ही आएगी

शर्म आती है के जिन्दा आज भी ये सोच है
बेटी तो वन की लता है ख़ुद ब ख़ुद पल जायेगी

एक पन्ना और कोरा सुबह फिर पकड़ा गयी
बेबसी की इक कहानी शाम फिर लिख जाएगी

रात का ये 'श्याम' आँचल ढांक लेगा प्यार से
रौशनी के वार से जब ज़िन्दगी घबरायेगी