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रेमेदिओस / महेश वर्मा

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(रेमेदियोस द ब्युटीफ़ुल नामक चरित्र, गैब्रियल गार्सिआ मार्खेज के उपन्यास 'एकान्त के सौ वर्ष' से है जो क़िस्से के मुताबिक एक दोपहर चादर समेत उड़ जाती है।)

एक साफ़ उजली दोपहर
धरती से सदेह स्वर्ग जाने के लिए
उसे बस एक ख़ूबसूरत चादर की दरकार थी ।

यहाँ उसने कढ़ाई शुरू की चादर में
आकाश में शुरू हो गया स्वर्ग का विन्यास .
यह स्वर्ग वह धरती से ही गढ़ेगी दूर आकाश में
यह कोई क़र्ज़ था उसपर ।

उसने चादर में आख़िरी टाँका लगाया
और उधर किसी ने टिकुली की तरह आख़िरी तारा
साट दिया स्वर्ग के माथे पर -– आकाश में ।

रुकती भी तो इस चादर पर सोती नहीं
इसमें गठरी बाँधकर सारा अन्धकार ले जाती
लेकिन उसको जाना था

पुच्छल तारे की तरह ओझल नहीं हुई
न बादल की तरह उठी आकाश में

उसने फूलों का एक चित्र रचा उजाले पर
और एक उदास तान की तरह लौट गई ।