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रे, न कुछ हुआ तो क्या ? / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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रे, कुछ न हुआ, तो क्या ?
जग धोका, तो रो क्या ?
सब छाया से छाया,
नभ नीला दिखलाया,
तू घटा और बढ़ा
और गया और आया;
होता क्या, फिर हो क्या ?
रे, कुछ न हुआ तो क्या ?

चलता तू, थकता तू,
रुक-रुक फिर बकता तू,
कमज़ोरी दुनिया हो, तो
कह क्या सकता तू ?
जो धुला, उसे धो क्या ?
रे, कुछ न हुआ तो क्या ?