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रोज सबेरे / मधुसूदन साहा

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रोज सबेरे चिड़िया आती,
चीं-चीं कर आवाज लगाती
देखो, सूरज निकल गया है
धूप द्वार पर तुम्हें बुलाती।

आओ, चलो दूर तक टहलें,
खुली हवा में पल भर रह लें
किरणों से कुछ उनका सुन लें
फूलों से कुछ अपना कह लें

सचमुच लगता बड़ा सुहाना,
सुबह नदी का शांत मुहाना,
जो उठ जाता सबसे पहले
उसने ही इसका सुख जाना।

सुबह-सुबह भौरों का गुंजन,
फूलों का करता मन-रंजन,
मंदिर के मंत्रोच्चारण से
होता है सबका भय-भंजन।