भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रोशनदान / रश्मि रेखा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कमरे में स्याह अँधेरा था
मैं खोज रही थी सूई
ऑखों ने दे दिया था जबाव
आस-पास नहीं थी कोई माचिस की तीली
नहीं था रोशनी का कोई दूसरा हिसाबो-किताब
कि तभी चमका
ईशान-कोण में धूप का चकत्ता
मैंने जाना उसी दिन रोशनदान का मतलब
अँधेरे में रोशनी की सेंध लगाने की बेचैनी