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लघु-तटिनी, तट छाई कलियां;/ सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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लघु-तटिनी, तट छाईं कलियां;
गूँजी अलियों की आवलियाँ।

तरियों की परियाँ हैं जल पर,
गाती हैं खग-कुल-कल-कल-स्वर,
तिरती हैं सुख-सुकर पंख-भर,
रूम घूमकर सुघर मछलियाँ।

जल-थल-नभ आनन्द-भास है,
किसी विश्वमय का विकास है,
सलिल-अनिल ऊर्मिल विलास है,
निस्तल गीति-प्रीति की तलियाँ।

परिचय से संचित सारा जग,
राग-राग से जीवन जगमग,
सुख के उठते हैं पुलकित डग,
रह जाती हैं अपल पुतलियाँ।