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लड़ाई / संजय सिंह 'मस्त'

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लड़ाई तो लड़ाई है!

लड़ो! क़लम से, हल से,
सत्य के, न्याय के बल से।
लड़ो फावड़े से, कुदाल से,
कांटे से, मछली के जाल से।

चुप-चुप रहने में, अत्याचार सहने में,
कौन-सी बड़ाई है!
लड़ाई तो लड़ाई है!

छैनी से, हथौड़ी से, आरी से,
बसूले से, भट्ठी, चिंगारी से।
वक्तव्यों से, नारों से लड़ो!
 भिड़ो! गुनाहगारों से लड़ो!

दलित, दमित रहने में, अत्याचार सहने में,
कौन-सी बड़ाई है!
लड़ाई तो लड़ाई है!

उस्तरे की, कैंची की कमाई से,
लड़ो! आदमखोर कसाई से।
जब तक रक्त का एक भी कण रहे,
जूझने की शक्ति रहे, रण रहे।

मन ही मन दहने में, अत्याचार सहने में,
कौन-सी बड़ाई है!
लड़ाई तो लड़ाई है।

जीवन तो अभी रौरव-नर्क है,
स्थिति पूर्ववत है, क्या फ़र्क है!
बिना लड़े हारना क्या है!
मन को इतना मारना क्या है!

पीब के पंक में बहने में, अत्याचार सहने में,
कौन-सी बड़ाई है!
लड़ाई तो लड़ाई है!