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लम्पट काल / कृष्णा वर्मा

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1
लम्पट काल
झूठ का बोल-बाला
झूठ का सुर ताल
झूठ आयाम
झूठ का गुनगान
सत्य हुआ अनाम।
2
बेपरवाह
रहता अनगढ़
होता ख़ूबसूरत
सज्जित हुआ
घिरा दिखावे में औ
जीवन हुआ ध्वस्त।
3
ढलान पर
पग हों नियंत्रित
पथ चढ़ाइयों के
करें स्वागत
पार्थ बनना सीख
वक़्त के सारथी का।
3
कैसी भी पीर
अपनी या पराई
नहीं कोई अंतर
धूप-छाँव का
है जुदा विभाजन
सबकी ज़िंदगी का।
4
दुनिया है ये
साहिल न सहारा
ना ही कोई किनारा
हैं तन्हाइयाँ
मरी यहाँ रौनकें
केवल रुसवाइयाँ।
5
बाँटते रहे
समझ कर प्यार
ये खुशीयाँ उधार
लौटाया नहीं
जब तूने उधार
मरा दिल घाटे से।
6
बुनी चाहतें
पिरोते रहे ख़्वाब
तुम्हारी दुआओं में
होती शिद्दत
पाते प्रेम, रहती
ना ख़ाली फरियाद।
7
दोनों अदृश्य
प्रार्थना औ विश्वास
अजब अहसास
असंभव को
संभव करने की
क्षमता बेहिसाब।
8
पीड़ा क्या हास
कटा करवटों में
उम्र का बनवास
नित आँसुओं
ने लिखा चेहरे पे
नूतन इतिहास।
9
फुर्सत मिले
तो पढ़ लेना कभी
पानी की तहरीरें
हज़ारों साल
पुराने अफ़साने
हैं हर दरिया के।