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लाभ-हानि, सुख-दुःख, प्रतिष्ठा-निन्दा / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(राग जैजैवंती-ताल त्रिताल)

लाभ-हानि, सुख-दुःख, प्रतिष्ठा-निन्दा और मान-‌अपमान।
हैं अनित्य ये सभी द्वन्द्व, या हैं प्रभुके ही रचित विधान॥
मिलता जाता कभी न कुछ इनसे, या करते सब कल्याण।
प्रभु की सहज कृपा अनन्त से होता इन सबका निर्माण॥
प्रभुके मंगलमय विधान पर मनमें रखो दृढ़ विश्वास।
कैसी भी स्थिति में मत हो‌ओ कभी क्षुध या तनिक उदास॥
है जगका सब कुछ अनित्य, है दुःखपूर्ण सारा व्यापार।
बरस रही है सहज सुहृदतम प्रिय प्रभुकी नित कृपा अपार॥