भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लालटेनें-2 / नरेश सक्सेना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बचपन के चेहरों और किताबों की तरफ़ लौटते हुए
वे सबसे पहले मिलती हैं
सियारों के रोने की आवाज़ों के बीच
एक शुभ संकेत की तरह हमारी तरफ़ आती हुईं

एक हाथ से दूसरे हाथ में जातीं
भरोसे की तरह
सोए हुए घरों में जागतीं
उम्मीद की तरह

देर रात
किसी सूने बरामदे में अकेली दिखाई दे जातीं
धुआँ देती और भभकती हुईं।