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लोग पुकारे जाएँगे, जब नाम से अपनी माओं के / निश्तर ख़ानक़ाही
Kavita Kosh से
रोगी ज़ौजा*, घोर थकन, ख़्वाब-आवर* जुर्रे* से आगाह
मैं तो नहीं हूँ, वो तो होगा, उलझे रिश्ते से आगाह
बीज में सपना जैसी कोंपल, ऊपर सूखा मरता फूल
धुंध में बे-आसारी को मैं गिरते मलबे से आगाह
लोग पुकारे जाएँगे, जब नाम से अपनी माओं के
उस दिन शायद कोई न होगा नुत्फ़े* से आगाह
बंद दुकान ये दारू की और उसके आगे रूकता मैं
मुर्दा नींदें काश न होतीं अपने नुसख़े से आगाह
नाज़ेबा* बातों पर अपनी हम ख़ुद लज़्ज़त लेते थे
नाख़ुश-नाख़ुश लोग कहाँ थे निस्फ़* दरिंदे से आगाह
1- रोगी ज़ौजा--बीवी, पत्नी
2- ख़्वाब-आवर--नींद लाने वाला
3- जुर्रे--घूँट
4-परिचित
5-नुत्फ़े--गर्भ
6-नाज़ेबा--अशोभनीय
7-निस्फ़--अर्द्ध