भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लोहे ने आदमी की कुत्ते जैसी सेवा की / संजय चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लोहे ने आदमी की कुत्ते जैसी सेवा की
और वैसा ही फल पाया
सोना सिर चढ़कर बैठा
सिर फुड़वाया आदमी का आदमी से
लोहा आदमी की बातों में रहा
हाथ-पैरों में और दिमाग़ के धारदार हिस्से में
सोना घुस गया उसकी ख़्वाबगाह में
नींदें हराम कर दीं उसकी

आदमी क्या इन सब बातों को जानता नहीं
शताब्दियों में कराहता लोहा
भविष्य में चिल्लाता है