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वंशी में बाँधो मत / रामचन्द्र ’चन्द्र भूषण’

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वंशी में बाँधो मत
मैं तो अनकथ्य किसी गोपन की राधा हूँ ।

झूलूँगी झूला
कदम्बों की डाल में ।
महलों में घेरो मत
मैं तो अनटूट किसी सर्जन की सीता हूँ ।

धूप में तपूँगी
पैठूँगी पाताल में ।
चित्रों में आँको मत
मैं तो अनदेख किसी अर्पण की संज्ञा हूँ ।

चम्पा हूँ डलिया में
दियरा हूँ थाल में ।
वंशी में बाँधो मत
मैं तो अनकथ्य किसी गोपन की राधा हूँ ।