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वक़्त फँसता नहीं विवादों में / महेश कटारे सुगम

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वक़्त फँसता नहीं विवादों में ।
कौन रहता है किसकी यादों में ।

पंख ख़ुशियों ने अपने खोले हैं,
प्यार जब आ गया इरादों में ।

छोड़ दी है यक़ीन की उँगली,
आई जब से दरार वादों में ।

आ रहीं हैं मुहब्बतें बाहर,
ख़ौफ़ घुसने लगा है माँदों में ।

भीख-सी माँगने लगे शाइर,
बात वो अब नहीं है दादों में ।