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वफ़ा अंजाम होती जा रही है / सैफ़ुद्दीन सैफ़

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वफ़ा अंजाम होती जा रही है
मोहब्बत ख़ाम होती जा रही है

ज़रा चेहरे से ज़ुल्फ़ों का हटा लो
ये केसी शाम होती जा रही है

क़यामत है मोहब्बत रफ़्ता-रफ़्ता
ग़म-ए-अय्याम होती जा रही है

सुना है अब तिरे लुत्फ़ ओ करम की
हिकायत आम होती जा रही है

दिखाने का ज़रा आँखें बदल लो
वफ़ा इल्ज़ाम होती जा रही है

मिरे जज़्ब-ए-वफ़ा से ख़ामुशी भी
तिरा पैग़ाम होती जा रही है

कोई करवट बदल ऐ दर्द-ए-हस्ती
तमन्ना दाम होती जा रही है

मोहब्बत ‘सैफ़’ एक लुत्फ़-ए-निहाँ थी
मगर बदनाम होती जा रही है