भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वही तो काम आना है / पृथ्वी: एक प्रेम-कविता / वीरेंद्र गोयल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निकलने दो इस कुत्ते को
पार हो जाने दो
रेलिंग में फँसी गाय को
तुम भी जाओ, रिक्शा चलाते हुए जाओ
रेहड़ी के साथ जाओ
कभी भी, कहीं से भी
कोई भी अचानक
भौंचक करता हुआ
सामने आ पड़ता है
सबको है जल्दी
बस कार वाला बेकार है
उसे कहीं पहुँचना थोड़े ही है
वो तो निकला है घर से
चाँद के गड्ढ़ो की सैर करने
वो तो निकला है घर से
हिमालय पर्वत पर चढ़ने
बहुत दूर है, थक जाएगा
इसलिए गाड़ी में बैठा है
पिघल जाएगी तब तक बर्फ
हो सकता है पहाड़ भी
बस एक पहाड़ीभर रह जाए
(एक फ्लाईओवर सरीखा)
दूसरे चाहे रह जाएँ खड़े
खड़े खड़े चाहे सड़ें
तुम्हें क्या?
तुम तो जल्दी से
सड़क पार कर लो
तुम्हें तो हर एक मिनट बचाना है
आखिर में वही तो काम आना है।