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वायरस / प्रदीप मिश्र

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वायरस


उनकी कोई जाति नहीं होती
किसी राष्ट्र के नागरिक नहीं होते
किसी भी धर्म का पालन नहीं करते
वे पूरी तरह से जीवित भी नहीं होते
और उनको मारना अत्यन्त जटिल होता है
विज्ञान की भाषा में
वे वायरस कहलाते हैं

जिस जाति में लगते हैं
उसका तहस-नहस कर देते
जिस राष्ट्र में लगते हैं
उसे मिटा देते हैं दुनिया के नक़्शे से
जिस धर्म में लगते हैं
उसे मनुष्यता के खिलाफ़ कर देते हैं

ऐसे ख़तरनाक वायरस पहले भी थे
लेकिन उनकी ज़गह
किसी भी सभ्यता में नहीं थी
समाज बाहर थे
उनके विरूध होती थीं सारी सभ्यताएं
संक्रमण होते ही
उनको नेस्तनाबुत कर दिया जाता था

हमारे विकसित समाज में
वे औजार की तरह उपस्थित हैं
उनकी जाति सर्वोपरि है
सबसे ज़्यादा राष्ट्रीयता उनमें देखी जाती है
वे जिस धर्म की ध्वजा उठाते हैं
उस धर्म पर लोग गर्व करते हैं

वे चुनाव लड़ते हैं
सत्ता पर काबिज होते हैं
भयानक नरसंहार करते हैं
इतिहास में खोह बनाते हैं

वे रूप धरते हैं तरह-तरह के
प्रेमिकाओं की तरह हृदय में दाखिल होते हैं
पिता की तरह अंगुलियों को थाम लेते हैं
माँ की तरह बहते हैं
दिल से दिमाग़ तक

इन खतरनाक वायरसों की चर्चा
पूरी दुनिया में है
इनकी पहचान के सारे सूत्र हैं
हमारे पास
वैज्ञानिक रोज इनको प्रणाम करते हैं
इनके आशीर्वाद के साथ ही शुरू करते हैं
इनके रोकथाम के टीके पर शोध
इस वर्ष के सारे नोबल सम्मान
उन लोगों को दिए गए

जो इन भयानक वायरसों के संक्रमण से
दुनिया को बचाने में लगे हैं

निर्णायकों की सूची के बारे में
किसी को कुछ पता नहीं है
कर्मणेवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन् ।