भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वासंती गीत / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आम बगीचा मंजर महमह मन बहकाबैछै।
फूल-फूल पर तितली भौंरा नाचै-गाबै छै।।

रात-रात भर महुआ टपकै,
मधु वरसाबै छै।
पवन चलै गमकौआ जखनी
तन तरसाबैछै।

विरहिन केॅ सौतिन कोइलियाँ आग लगाबै छै।
आम बगीचा मंजर महमह नाचौ-गाबै छै।।

झूमी-झूमी गेहूँ बाली
दिल हरसाबै छै।
सरसों तीसी सजी-धजी केॅ
देखोॅ रास रचाबै छै।

वंशी टेरै कुँवर कन्हैया, गोपी नाल बजाबै छै।
आम बगीचा मंजर महमह नाचै-गाबै छै।।

परदेशी के मन बौराबै
झटपट के टिकट करावै छै
होयतै कोय अभगले भैया।
ऐमें घोॅर नैं आबै छै।

चारो तरफ गजब मस्ती छै, नयना नेह लगाबै छै।
आम बगीचा मंजर महमह नाचै-गाबै छै।।

-अंग गौरव/ 25.03.2014