भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वाह! भई, वाह! / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जुम्मन के चाचा
सनीमा गए,
चाची से छुपकर
वाह! भई वाह!

लाइन में लगकर
टिकट खरीदा,
मलमल के कुर्ते का
बना मलीदा,
तोंद हुई पंचर
वाह! भई वाह!

फिलम लगी थी
‘नये सबेरा’
हॉल में देखा जो
घुप्प अँधेरा,
भाग आए डरकर,
वाह! भई वाह!