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वा चकई को भयो चित चीतो चितौत चँहु दिसि चाय सों नाँची / देव

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वा चकई को भयो चित चीतो चितौत चँहु दिसि चाय सों नाँची ।
ह्वै गई छीन छपाकर की छवि जामिनि जोन्ह मनौ जम जाँची ।
बोलत बैरी बिहंगम देव संजोगिनि की भई संपति काँची ।
लोहू पियो जु वियोगिनी को सु कियो मुख लाल पिसाचिनि प्राची।


देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।