भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विज्ञापन में किसान / नीलेश रघुवंशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लहलहाते खेत -- आसमान को छूते...
खड़ी फ़सलें -- मायके आईं लड़कियों की तरह खिलखिलातीं...
लिपे-पुते घर, जिनके भीतर से
दही मथने और गेहूँ फटकने का सुरीला शोर
ट्रैक्टर पर हाथ में मोबाइल लिए किसान
ट्राली अनाज के बोरों से लदी
मण्डी में मिलते अनाज के सही दाम
खिल-खिल जातीं बाछें घर-भर की

कितना ख़ुशहाल जीवन, विज्ञापन में किसान का !