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विदा / सिर्गेय येसेनिन / रमेश कौशिक

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यह येसेनिन की अन्तिम कविता है। आत्महत्या करने से पहले येसेनिन ने अपने ख़ून से एक काग़ज़ पर यह कविता लिखकर छोड़ दी थी।

विदा
मेरे मित्र विदा
                मित्र प्यारे
                 तुम हृदय में बसे मेरे

इस पूर्व निश्चित विदा-बेला में
छिपा है वायदा भावी मिलन का

बिना कुछ बोले
बिना हाथों को मिलाए
ले रहा तुमसे विदाई
                               मित्र मेरे
मायूस मत होना
              न आँखों में व्यथा ढोना

मृत्यु का आना
न कोई बात होती है नई
ज़िन्दगी तो मित्र
                 इससे भी गई बीती