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विदेशिनी-4 / कुमार अनुपम

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तुम्हारी स्मृतियों की ज़ेब्रा-क्रॉसिंग पर एक ओर रुका हूँ

आवाजाही बहुत है
यह दूरी भी बहुत दूरी है

लाल बत्ती होने तो दो
पार करूँगा यह सफ़र ।