भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विद्वेष / शिरीष कुमार मौर्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आप
उसे महसूस कर सकते हैं
बातों की
धूप - छाँव में
चेहरे पर वह कुछ अलग तरह की रेखाएं
बनाता है

पहली निगाह में दिखाई भले न दे
पर धीरे - धीरे
समझ में आता है

अचानक ही जन्म नहीं लेता वह
ह्रदय में पलता है
सरीसृपों के अंडे -सा

फूटता है
वांछित गर्माहट और नमी पा कर

मादा मगरमच्छ की तरह
हमेशा तैयार मिलते हैं
उसे
संभालकर मुंह में दबाये
जीवन के प्रवाह तक
पहुंचाने वाले !