भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विरासत / नरेश मेहन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमें मिली है
विरासत मे शुद्व हवा
शुद्व पानी
खुली धरती
और साफ निर्मल नदियां।
हमने
निकट से भोगा है
प्रकृति को प्यार से
हमने छीनी है
अपने बच्चों से
उनकी जमीन
और
हम दे रहे है
अपने बच्चों को
गंदला पानी
फास्ट फूड
और उसको पालने वाली
पॉलीथीन की अमर थैलियां
तथा वाहनों का
आत्मघाती धुआं।
विरासत में
क्या हम यही देंगे
अपने भोले-भाले बच्चों को?