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विशिष्टों का दु:ख / सुधा उपाध्याय

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खुश्क हंसी लीपे पोते
अपनी-अपनी विशिष्टताओं में जीते
लोगों के कहकहे भी होते हैं विशिष्ट
कृत्रिमता की खोल में
जबड़ों और माथे पर कसमसाता तनाव
उन्हें करता है अन्य से दूर
कभी नहीं पता चल पाता
मिल जुलकर अचार मुरब्बों के खाने का स्वाद
कोई नहीं करता उन्हें नम आंखों से विदा
या कलेजे से सटाकर गरम आत्मीयता
विशेष को कभी नहीं मिलता
शेष होने का सुख