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विसालेयार (दोस्त से मुलाकात)-1 / नज़ीर अकबराबादी

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नज़र आया मुझे एक शोख़ ऐसा नाज़नीं चंचल।
कि जिसकी देखकर सजधज मेरा दिल हो गया बेकल॥
अदा भी चुलबुली और आन में भी कुछ अजीब छलबल।
फसूँगर अँखड़िया ज़ालिम कि और जिस पर लगा काजल॥
कभी नज़रें लड़ावे और कभी मुखड़े पे ले आँचल।
पड़ा दुरकान में झलके गले में सज रही हैकल॥
निगारे गुल इज़ारे नौ बहारे नाज़ पैराए।
दिल आरामे, परी शक्ले बुते, शोखे़ दिल आराए॥<ref>वह एक प्रिय गुलाब जैसे गालों वाला, नई बहार के समान नाज़ों अंदाज करने वाला, दिल का आराम, परी जैसी शक्ल वाला बुत के समान चंचल और दिल को सजाने वाला है</ref>।
देह सुमन तें ऊजरी मुख तें चंद लजाय।
भोएँ धनकें तान कें कमलन बान चलाय॥

मुझे उस शोख़ चंचल ने जब अपना हुस्न दिखलाया।
दिखाकर इक नज़र चलता हुआ और मुझको तड़पाया॥
गिरा मैं होके बेखु़द यूँ परी का जैसे हो साया।
फिर उसमें होश जब आया तो दिल सीने में घबड़ाया॥
बहुत सा उस घड़ी मैंने तो अपने दिल को समझाया।
न माना दिल ने हरगिज ढूंढना ही उसको ठहराया॥
कशीदम नालओ अज़ शौक पैराहन कबा करदम।
बराए जुस्तनेऊ सब्रो तस्कीं रारिहा करदम<ref>मैं रोया और प्रेम में मैंने अपने वस्त्रों को फाड़कर गुदड़ी बना डाला उसको खोजने के लिए मैंने सब्र और आराम को छोड़ दिया।</ref>॥
भेंट भई जातें कही नैनन आँसू लाय।
है कोई ऐसा पीत जो पीतम मंदिर बताय॥

कहूँ क्या उस घड़ी यारो अजब अहवाल था मेरा।
हरइक से पूछता था हर घड़ी उस शोख़ का डेरा॥
तलब की कसरतें और जुस्तजू का शौक बहुतेरा।
इधर आहों की शोरश और उधर अश्कों ने आ घेरा॥
कभी थी इस तरफ झाँकी कभी था उस तरफ फेरा।
जो कोई पूछता था क्यों मियाँ क्या हाल है तेरा॥
अजूमीगुफ़्तम अहवालमनपुर्स ऐ यारे ग़मख़्वारम।
ख़्रावम दिल फ़िगारम बे क़रारम नौ गिरफ़्तारम<ref>मैं उससे यह कहता था कि ऐ मेरे हमदर्द दोस्त मेरे हालात मत पूछ मैं बरबाद हूँ। फटे दिल वाला बेक़रार और नया गिरफ़्तार हूँ।</ref>॥
अलकन फन्दे उड़ पड़े मन फँस दीनो रोय।
दृगन जादू डार के सुध बुध दीनी खोय॥

अभी याँ इक परीरू कर गया है मुझको दीवाना।
मेरा दिल हो गया उस शमा रू को देख परवाना॥
बनाया उसकी आँखों ने मुझे इस मै का पैमाना।
निगाह ने कर दिया उसकी मुझे एक पल में मस्ताना॥
मियाँ एकदम तो मैं अपना सुनाऊँ उसको अफसाना।
मकाँ उसका तुझे ऐ यार कुछ मालूम है या ना॥
अगर दानी चुना कुन लुत्फ ताबीनम मकाँ नशरा।
नि हम सरबरदरश दर शौक बोसम आश्ताँ नशरा<ref>अगर तू जानता है तो इतनी कृपा कर कि मैं उसके मकान को देख सकूँ उसके दरवाजे़ पर अपना सर रखूँ और शौक में उसकी चौखट को चूम सकूँ</ref>॥
नेह गरे का हार है हूँ तोरे बलिहार।
मारत मोहि बिरह दुख ले चल वाके द्वार॥

यह सुनकर था वह कहता मैं तुझे उसका पता दता।
नहीं मैं साथ जाकर तुझको उसका घर बता देता॥
अभी ले जाके तुझको उसकी ड्योढ़ी पर बिठा देता।
जो वाँके बैठने के तौर हैं वह सब जता देता॥

अदब से जाके उसके हलकए दर को हिला देता।
निकलता जब तो खू़बी से तुझे उससे मिला देता॥
व लेकिन आँ बुते सरकश जे आशिक आरमी दारद।
रशीदन ता दरश आसाँ नं बासद कारमी दारद<ref>लेकिन सह सरकश बुत आशिक़ से नफरत करता है इसलिए उसके दरवाजे़ तक पहुँचना आसान नहीं, मुश्किल काम है।</ref>॥
पलक कटारी मार के हिरदे रक्त बहाय।
कहाँ अब ऐसा मर्द जो बांके द्वारे जाय॥

ये बातें कहके था मेरे बहुत वह दिल को बहलाता।
जो उल्फ़त में जताते हैं वही था मुझको बतलाता॥
मगर मुझको बगैर अज देखने के कुछ न था भाता।
कभी था आह करता और कभी अश्क भर लाता॥
जो रोता मैं तो मुझको इस तरह आकर वह समझाता।
तेरा दिलवर है वह तू देखने को क्यों नहीं जाता॥
बे बीनम आखिरश जे मंद ताके निहाँ वाशद।
असीराने मुहब्बत रा कुज़ा परवाये जाँ वाशद॥
नेह नगर की रीति है, तन मन दीनो खोय।
पीत डगर जब पग रखा, होनी होय सो होय॥

वह था ये बात सुनता जब मेरा मुँह देख रहता था।
जो चलता था तो वह अपनी तरफ को हाथ गहता था॥
मेरा दिल आतिशे फुर्कत में उस दिलवर की रहता था।
न था कुछ बन जो आता, इससे दर्दो रंज सहता था॥
गिरेबाँ तक पड़ा अश्क उस घड़ी आँखों से बहता था।
वह कहता था अरे फिर जा तो मैं यूँ उससे कहता था॥
कशम आहो नुमायम गिरयाओ शामो सहर गरदम।
न बीनम ता रुखस अज़ जुस्तजू हरगिज न बरगरदम<ref>मैं आहें भरूँगा, रोऊँगा और शामो सुबह घूमता फिरता रहूँगा जब तक उसके चेहरे को न देख लूँगा तब तक हरगिज़ अपनी कोशिश से बाज़ न आऊँगा।</ref>
पीतम या मन मोह के कीन्हो मान गुमान।
बिन देखे वा रूप के मेरे कलपत प्रान॥

चला वाँ से मैं उस ग़मख्वार की बातों से घबराकर।
यही थी आरजू दिल में कोई बतला दे उसका घर॥
परेशाँ हाल फिरता था, कभी ईधर कभी ऊधर।
न पाया जब मकां उसका तो बैठा एक रस्ते पर॥
यकायक देखता क्या हूँ कि आ पहुँचा वही दिलबर।
उठा मैं और कहा यूँ रखके सर को उसके कदमों पर॥
मरा मजरूह करदी वज़ निगाहमरुख़ ब पोशीदी।
चे तकसीरम कि दिल बुरदी व हाले मन न पुरसीदी<ref>तूने मुझे जख़्मी कर दिया और मेरी आँखों से अपना चेहरा छिपा लिया। आखि़र मैंने कौन ससा कुसूर किया था कि तू मेरा दिल चुरा ले गया और उसके बाद तूने मेरा हाल भी न पूछा।</ref>॥
मनमोरा बस कर लियौ काहे कीन्हीं ओट॥
ऐसी मोते मनहरन क्या बन आई खोट॥

कही यह बात जब उस शोख़ से मैंने बचश्मे नम।
तो पहले नाज़ मैं वह नाज़िनी मुझसे हुआ बरहम॥
लगा मुझको झिड़कने उस घड़ी त्यौरी चढ़ा पैहम।
फिर उसमें रहम जो आया हँसकर यूँ कहा उस दम॥
तुझे जख़्मी जो कर आये थे अब तेगे निगह से हम।
लगा देंगे तेरे हम ज़ख़्म पर अब तुल्फ़ का मरहम॥
”नज़ीर“ ई हर्फ चूं गुफ़्ताँ आँ निगारे दिल सिताने मन।
ग़म अज दिल रफ़्तो आमद शादमानी ता बजाने मन<ref>‘नज़ीर’ जब मेरा दिल लेने वाले उस महबूब ने यह बात कही तो ग़म मेरे दिल से चला गया और मेरी रूह के अन्दर खुशियाँ भर गई।</ref>
मन मेरो या बात में निपट भयो परसंद।
निकसो दुख मन बीच तें आन भरयो आनंद॥

शब्दार्थ
<references/>